हरितालिका तीज व्रत का महात्म्य (दिनांक 02 -09- 2019 ) महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान"ट्र्स्ट" के ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पाण्डेय के अनुसार हरितालिका तीज, यह व्रत भाद्रपद शुक्ल, तृतीया को करने का विधान है व तृतीया दुतिया से विद न हो कर चतुर्थी से विद हो तो अत्यंत शुद्ध है , क्यों की , दुतिया तिथि पितरों की तिथि व चतुर्थी पुत्र की तिथि मानी गयी है , इस वर्ष सोमवार का दिन,हस्त नक्षत्र पश्चात चित्रा नक्षत्र रहेगा । शुभ योग मिल रहा है । इस व्रत को शास्त्र में सधवा व विधवा सबको करने की आज्ञा हैं ,व्रत करने वाली स्त्रियों को चाहिए की व्रत के दिन सायं काल घर को तोरण आदि से सुशोभित कर आँगन में कलश रख कर उस पर शिव एवं गौरी की प्रतिष्ठा कर उनका षोडशोपचार पूजन करें व माँ गौरी का ध्यान कर निम्न मन्त्र का जप यथा सम्भव करें , मन्त्र - देवि देवि उमे गौरी त्राहि माम करुणा निधे ,ममापराधा छन्तव्य भुक्ति मुक्ति प्रदा भव !! का जप करती हुए रात्रि जागरण करें ,दिन व रात में निराहार रहने का विधान है,दूसरे दिन दोपहर के पूर्व पारणा करें ! शरीर में समर्थ रहने तक व्रत करें उम्र की कोई सीमा नही है , व्रत के उद्यापन के समय ,शिव व माँ पार्वती जी की स्वर्ण की प्रतिमा बनवा कर सायं काल घर के मध्य मण्डप बनवा कर स्थापित करें ,पूजन करें व शिव के पञ्च वस्त्र व माता जी के लिए तीन वस्त्र व श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें , इसी दिन हरी काली, हस्त गौरी व कोतिश्वरी आदि के व्रत भी होते हैं,इसमें माँ पार्वती के पूजन की प्रधानता है ! इस व्रत को भगवान शिव की प्राप्ति हेतु पर्वत राज तनया माँ पार्वती ने सर्व प्रथम किया था ! ,निष्ठा पूर्वक इस व्रत का पालन करने वाली स्त्रियाँ सदा सौभाग्यवती बनी रहती हैं !