निजी विद्यालयों के कर्मचारियों का वर्तमान संकटग्रस्त भविष्य अनिश्चित।
आनंद सिंह 'मनभावन'
वैश्विक महामारी से जूझ रहे इस देश मे लॉक डाउन का समय सबसे ज्यादा असंगठित क्षेत्र के लोगों पर भारी पड़ रहा है।विशेषकर निजी विद्यालयों में अध्यापन कार्य करने वाले दंपत्ति अथवा व्यक्तियों पर। दिहाड़ी मज़दूरों की दशा तो रोज कमाने रोज खाने वाली है।लेकिन निजी विद्यालयों में पढ़ा रहे अध्यापकों की स्थिति ज्यादा चिंताजनक है।इनका दो-दो तीन-तीन महीनों के वेतन रुका पड़ा है।जबसे लॉकडाउन की स्थिति बनी है तबसे ज्यादातर निजी विद्यालयों के अध्यापकों को वेतन नहीं मिला है।ऐसे में उनके सामने आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया है।किराए के मकानों में रहने वालों के साथ तो और भी कठिन परिस्थितियां पेश आ रही हैं।मकानमालिक ने सहृदयता दिखा भी दी तो दूध,किराने ,बिजली बिल,सब्ज़ी, पेपर और तो और इन सबसे महत्वपूर्ण दवा की जरूरतों से तो इनकार नहीं किया जा सकता।धीरे धीरे दो महीने बीत गए है ऐसे में निम्नमध्यवर्गीय परिवार तो आर्थिक रूप से टूटने की कगार पर है।अगर समय रहते इस पर प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो स्थितियां चुनौतीपूर्ण हो जाएंगी।
.........मनभावन।
एक तीर से दो शिकार करने वाला तो मुहावरा आप सभी ने सुना होगा,उसी से मिलताजुलता और उससे कही ज्यादा कारगर अस्त्र आजकल हमारे बड़े शिक्षण संस्थानों के आलाकमान को मिल गया है।
जी हाँ आप ने बिल्कुल सही पढ़ा है,ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था दुधारी तलवार की तरह इन शिक्षण संस्थाओं के मालिक प्रयोग में ला रहे हैं।इसके सकारात्मक पक्ष कितने प्रभावकारी हैं इससे तो आप सब भली भांति परिचित हो चुके होंगे,परंतु इसके नकारात्मक पहलू कितने विनाशकारी हैं इसको समझने का प्रयास कीजिये।
कुछ सम्मानित शिक्षण संस्थान में, जिसकी जड़ें बहुत गहरी,शाखाएं अनंत,और "भुजाएं" बहुत विस्तृत और विशाल हैं,उसके एक शिक्षक जो गर्मिन इलाके में अपने सीमित संसाधनों से इस लॉकडाउन से संघर्ष करते हुए परिवार को संभालने में लगे हैं,उनके पास फोन आता है कि आप ऑनलाइन क्लास हेतु 'मैटीरियल' उपलब्ध करवाएं,वो बिजली एवम इंटरनेट दोनों की अनुपलब्धता का हवाला देते हुए अपनी असमर्थता जाहिर करते हैं तो उन्हें उनकी सेवाओं से पदमुक्त करने की सूचना दे दी जाती है।
सोचिये जो व्यक्ति पूरी निष्ठा से कार्य करते समय ये उम्मीद करता है कि संकट के वक़्त संस्था की तरफ से किसी कुशलक्षेम पूछने अथवा किसी वित्तीय सहयोग हेतु फोन आएगा,उसी संस्था ने बिना उसकी परेशानी को समझे,उसके श्रम का मूल्य देने के बजाए अपने स्वार्थवश ऐसे वक्त में उसे पदमुक्त कर दिया जब उसे अपने आला अधिकारियों से सहानुभूति और सहयोग की सबसे ज्यादा जरूरत थी।
दूसरा प्रकरण ये की बहुत सी संस्थाओं की छोटी कक्षाओं में जो शिक्षकगण अध्यापन करते हैं उनमें से ज्यादातर महिलायें होती है जो अपेक्षाकृत कम वेतन पर काम करने को इस वजह से मजबूर होती हैं क्योंकि वो तकनीकि रूप से प्रवीण एवम प्रशिक्षित नहीं होती या होते हैं।वो अपनी घरेलू आवश्यकताओं में सहयोग हेतु इतने कम वेतन में तमाम दबाव एवम शोषण सहते हुए कार्य करने को बाध्य होती/होते है।
उनको भी उनकी कार्य का उचित मूल्य देने की बात तो दूर उनसे भी इस कठिन समय मे सहानुभूति एवम सहयोग की बात कहने के बजाय उनको कार्यमुक्त करने की धमकी दी जा रही है।
ऐसे में ये कहना कही से भी अनुचित नही जान पड़ता कि ऑनलाइन शिक्षण पद्धति,और कक्षाओं की आड़ लेकर ये बड़ी भुजाओं और 'शाखाओं' वाले शिक्षण संस्थान अपने मातहत,सहयोगियों, और सहायकों पर इस दोधारी तलवार का प्रयोग कर रहे हैं। इस समय जब संक्रमण और संकट के इस दौर में जब कर्मचारी ये उम्मीद कर रहे थे कि इनसे सहानुभूति प्रदर्शित करते हुए समय पूर्व इनका निर्धारित वेतन ही मिल जाये,जो अभी तक इनको नहीं मिला,बजाए उसके उनके भविष्य को ही सुनियोजित तरीके से अंधकारमय बनाने की साजिश हो रही है।आशा है सुधिजन इस पर अपनी प्रतिक्रिया देंगे और अपने स्तर से इसको उच्चधिकारियों तक पहुंचाने में हमारा सहयोग करेंगे।
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.........मनभावन।