सभी चैन और फुर्सत के पल में होगा।
लेकिन किसी का किसी से मिलना ना होगा ।
सभी इस वक्त के हवाले ही आरोप हैं।
वक्त और काल यह दुर्गम संयोग है। कहां करते थे कभी फुर्सत हो चले आना।
अब तो सोच के ही डरे कहते मत जाना।
लगता है वो भी एक दौर बीत गया। वक्त का किस विस्मयकारी खेल जीत गया।
अब तो आदतों में सुधार की गुंजाइश नहीं।
करना ही वजिव उलंघन दिली ख्वाइश नहीं।
अचानक ही एक तूफान भयावह आया है।
हर तरफ मौत का सन्नाटा छाया है।
पिंकी अग्रहरि
शिक्षिका
( सूर्या इंटरनेशनल एकेडमी खलीलाबाद)