जीवात्मा व परमात्मा का मिलन ही योग कहा जाता है, जहां महर्षि व्यास ने 'योग:समाधि' उच्चारित करके योग को समाधि में निहित कर दिया है वहीं पाणिनि ने योग का अर्थ-जोड़ना,मिलाना, व मेलजोल इत्यादि प्रचारित किया है वही पतंजलि ने भी योग को समाधि में समाहित करते हुए शरीर को स्वस्थ्य,संस्कारी, व समस्त इंद्रियों पर नियंत्रण करते हुए जीवन को आनन्दमय बनाने का एक रास्ता बताया है, जैसे योग के माध्यम से हम चित्त की समस्त वृत्तियों में एकाग्रता योग के विभिन्न साधन जैसे-हठ, मन्त्र,ज्ञान,कर्म आदि को हठयोग,मंत्रयोग,भक्तियोग,ज्ञानयोग,कर्मयोग,आदि का प्रयोग करके जीवन को सुखद बना सकते हैं ।इसी प्रकार से श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने योग को परिभाषित करते हुए कहा है कि -'योगस्य:कुरु कर्माणि संग त्यक्त्वा धनन्जय। सिद्धिसिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।'अर्थात हे धनन्जय! तु आसक्ति त्यागकर समत्व भाव से कार्य कर! सिद्धि और असिद्धि में समता-बुद्धि से कार्य करना ही योग है। योग के सम्बंध में इस तरह की अनेक व्यख्या परिलक्षित होती है, ततपश्चात यह कहना यथोचित होगा कि योग के अभ्यास व इसके दर्शन से व्यक्ति में प्रेम,आत्मीयता, अपनत्व,सदाचार, जैसे गुण आ ही जाते हैं साथ ही साथ आरोग्य युक्त सुखद जीवन प्राप्त होता है।
जैसे की हम महसूस कर सकते हैं कि वर्तमान में संयुक्त परिवारो के विघटन व एकल परिवार के विकास व दूषित पर्यावरण, दूषित सामाजिक व्यवस्था, जीवन में भौतिक सुख सुविधाओं का अत्यधिक प्रयोग व अनेक प्रकार की कुत्सित मानसिकता के कारण आज व्यक्ति संवेदनहीन,असहनशील,क्रोधी,
स्वार्थी होता जा रहा है जिसका प्रभाव स्वस्थ्य शरीर पर भी पड़ रहा है, और कहा जाता है कि एक स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ आत्मा का वास होता है, और जब शरीर स्वस्थ्य होता है तो परिवार,समाज व देश भी स्वस्थ्य होता है।और यह सब योग से ही सम्भव है।इसी वजह से विश्व ने इसके महत्व को समझते हुए
11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्रसंघ में 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस'को मनाने के प्रस्ताव को मंजूर किया गया और इसके पश्चात ही योग का महत्व जन जन तक व जन जन के लिये महत्वपूर्ण हो गया ।
21 जून 2015 को पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में 35000 से अधिक लोगों व 84 देशों के प्रतिनिधियों ने दिल्ली के राजपथ पर योग के 21 आसन करके कई रिकॉर्ड स्थापित कर दिया।
तातपर्य यह है कि यदि योग से निरोग रह कर हम जीवन के सभी सद्कर्मो के भागीदार रहते हुए सुखमय जीवन बिता सकते हैं तो योग क्यों नही? और वर्तमान में स्वामी रामदेव ने तो योग को नई ऊंचाई प्रदान की है और अनेक माध्यमों से समस्त लोगों तक योग के समस्त आसनों को पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं यहां तक कि असाध्य रोगों को भी योग के माध्यम से ठीक करने का प्रमाण उन्होंने दिया है,।
स्वामी जी ने योग के आसनों व प्राणायाम के क्रम में भस्त्रिका प्राणायाम, कपाल भाती, ब्रह्म,अग्निसार,उज्जयी,अनुलोम विलोम,भ्रामरी,उद्गीथ,प्रणव मुख्य रूप से है जबकि आसनों में सूर्यनमस्कार, मण्डूकासन,शशकासन,गोमुखासन,वक्रासन,भुजंगासन,शलभासन,मर्कटासन,पवनमुक्तासन, अर्धहलासन, पादवीरतासन,व द्वि-चक्रिकसन मुख्य है, जबकि कुछ सूक्ष्म व्यायाम भी बताए गए हैं,।
यदि हम वास्तव में समस्त योगासनों का प्रयोग नही कर सकते हैं तो कुछ आसान योग का प्रयोग करके जीवन को स्वस्थ्य ,सुरक्षित,स्वावलम्बी,सुखमय, निरोग व लाजबाब बना सकते हैं इसीलिये कहते हैं कि-
करो योग,रहो निरोग ।
डॉ अरुण कुमार श्रीवास्तव,
प्राचार्य,
श्री मुरलीधर भागवत लाल महाविद्यालय, मथौली बाजार,कुशीनगर,