देशभक्ति के गतिरोध

     


                 


(आनंद सिंह 'मनभावन')


देशभक्ति के जज़्बे को हमेशा से ही  फिल्मों,नाटकों,प्रदर्शनों से ज्यादा पहुंच और समर्थन मिला है।जब भी राष्ट्रीयता,राष्ट्रभक्ति,अथवा राष्ट्रीय आंदोलनों,और जागरूकता को जगाने की बात आई है,मनोरंजन के साथ ही ज्ञानवर्धन को प्राथमिकता दी जाती रही है।इसीलिए हम इस आलेख को एक सिनेमा के संवाद और दृश्य के साथ जोड़ते हुए गंभीर चिंतन की तरफ चलेंगे।
नब्बे के दशक में आई एक ब्लॉकबस्टर  फ़िल्म दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे के एक दृश्य के साथ बात शुरू करते हैं।फ़िल्म में नायिका द्वारा नायक से ये कहने पर कि, मैंने तुम्हे पहले ही कहा था कि मुझको यहां से ले चलो राज़....
अब उस दृश्य में नायक द्वारा दिये गए जवाब को याद कीजिये क्योंकि आज के आलेख का केंद्रीय विषय उस जवाब से संबंधित है और वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में समीचीन भी। 
नायक,नायिका को ये समझाते हुए कहता है कि बाबूजी ठीक कहते हैं सिमरन की,मैं झूठा हूँ,धोखेबाज़ हूँ, तो क्या हुआ अगर मैं झूठ तुमको पाने के लिए बोलता हूं।बाबू जी ठीक कहते हैं....और इस तरह नायक अपने अंदर तमाम तरह की बुराइयां गिनाते हुए अंततः यह बात कहता है कि की इन तमाम बुराइयों के बाद भी ये दीवाना तुमको पागलों की तरह चाहता है। किसी ने भी यह संवाद विस्मृत नही किया होगा क्योंकि यह वो फ़िल्म थी जिसने मुम्बई के मराठा मंदिर सिनेमाघर में लगातार 1000 हफ्ते चलने का रिकार्ड बनाया है। अब मूल विषय पर आते हैं।आजकल अपने देश का राजनीतिक घटनाक्रम कुछ इसी तरह का बन गया है जिस पर विश्लेषण करते हुए हमारे राजनीतिज्ञों और आम नागरिकों को, नायक के इसी संवाद द्वारा सीखने की नितांत आवश्यकता है।
   माफ कीजिये लेकिन एक बड़ी बात समझने और समझाने के लिए इस इस फ़िल्म के संवादों को इसलिए माध्यम बनाना पड़ा क्योंकि यह एक ऐसी फिल्म थी जिसके संवाद हर छोटे बड़े को जुबानी याद है।
   अब जरूरत आ गई है कि देश के मस्तक को चौतरफा घेरने के दुश्मन के कुत्सित प्रयासों को हमारे राजनीतिज्ञों, विपक्षी पार्टियों,सभी कार्यकर्ताओं एवम आम नागरिकों को देश के अंदर होने वाली तमाम राजनैतिक अंतर्विरोधों को दरकिनार करते हुए,और सारी बुराइयों को अंगीकार करते हुए भी राष्ट्रहित में एक जुट हो जाने की जरूरत है।
हम अपने गतिरोध,अंतर्विरोध और कमियां,झगड़े,लड़ाइयां सब दूर करते रहेंगे।लेकिन दुश्मन को हमारी इन कमजोरियों और अंतर्विरोधों का फायदा उठाने की इजाज़त और छूट हरगिज़ नही दे सकते।
याद रहे, अगर राष्ट्र रहा,उसका स्वाभिमान,सवभौमिकता,संप्रभुता और सीमाएं सुरक्षित रहीं, तभी हमारा भी अस्तित्व सुरक्षित रहेगा ।जब तक हम टुकड़ों में बंट कर दुश्मन को अपनी कमजोरियों का फायदा उठाने के अवसर प्रदान करते रहेंगे,तब तो न हम रहेंगे न हमारा अस्तित्व,अहंकार और न ही हमारी आपसी लड़ाई रह सकेगी।क्योंकि तब हमारा ही कोई वजूद नही होगा।
   कुछ दशक पहले के पूर्व हम सैकड़ों वर्ष की गुलामी से मुक्त होकर स्वतंत्रता के मायने और मूल्यों को समझ चुके हैं।साथ ही हमने यह भी जाना है कि गुलामी की कितनी बड़ी कीमत हमारी पीढ़ियों ने चुकाई हैं।कितनी यातनाएं,कितने ज़ुल्म,और कितनी शहादतों के किस्से हमारे इतिहास की किताबों के पन्नों में दम तोड़ रहे हैं।अब भी जिनको यकीन ना हो तो वो गुलामी की ज़िंदगी के ज़ुल्मों का साक्षात दर्शन कर सकते हैं पंजाब के जलियांवाला बाग में जाकर दीवारों पर बने गोलियों के निशान और उस समय लाशों से भरे कुएं के साक्षात्कार कर के।उन्हें यकीन हो जाएगा इस बात पर की घोड़ों के टापों के नीचे कुचली जाने वाली दर्दनाक आवाज़ें किस वहशीपन का शिकार हुई होंगी।
हम किसी पार्टी,किसी व्यवस्था और किसी व्यक्ति से असंतुष्ट,नाराज़ अथवा कुपित होकर अपना विरोध प्रदर्शित कर सकते हैं लेकिन यह समय एकजुटता दिखाने का है।हमें इस समय आपसी अंतर्विरोधों को ताक पर रखकर पूरी निष्ठा,समर्पण और पूरे जोश के साथ देश के राजनीतिक नेतृत्व को अपना भरपूर सहयोग देना चाहिए।इस समय सारे विरोधों को दरकिनार कर, अपने राष्ट्र के प्रति एकनिष्ठ होकर देश और सेना के नेतृत्व और नेतृत्वकर्ता को सहयोग देकर उनका मनोबल बढ़ाने की जरूरत है।
जय हिंद।