जिंदगी



कभी सुबह की तरुणाई,तो कभी शाम है जिंदगी,
कभी वक्त की मशक्कत, तो कभी आराम है जिंदगी,
कभी फूलों की खुशबू,तो कभी कांटो सी चुभन,
कभी संघर्षों की सौगात,तो कभी मुकाम है जिंदगी,


कभी बचपन कभी यौवन,तो कभी ढलती हुई सांसे,
कभी आंखों के धड़कन से,बरसती हुई सांसे,
कभी अपने पराये हैं, कभी गैरों के साये हैं,
कभी खुशियों की महफ़िल है, कभी बदनाम है जिंदगी,



कहीं लम्हा है अश्कों का,कहीं हंसता नजारा है,
कहीं हंसती हुई बस्ती,तो कहीं कोई बेसहारा है,
कहीं धागों में उलझी सी,सफर बस नाम है इसका,
गर हंस के पी जाओ,तो बस जाम है जिंदगी,


कहीं बिखरा हुआ दिल है, कहीं टूटी हुई यादें,
कहीं मिल जाती मंजिल है, तो कहीं होती है फरियादें,
इसी सुख दुःख के साये में,निकल जाता है हर लम्हा,
कुदरत ने जो बक्सा है, बस वो इनाम है जिंदगी,


      डॉ अरुण कुमार श्रीवास्तव,
                     प्राचार्य,
श्री मुरलीधर भागवत लाल महाविद्यालय, मथौली बाजार,